Ad

कृषि क्षेत्र

हरित क्रांति के बाद भारत बना दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक

हरित क्रांति के बाद भारत बना दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक

नई दिल्ली। हरित क्रांति के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश बना है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत ने 1068.4 लाख टन गेहूं का उत्पादन किया है, जो वर्ष 1960 के मुकाबले 1000 फीसदी अधिक है। हरित क्रांति से ही भारत को कृषि के क्षेत्र में विशेष ख्याति प्राप्त हुई थी। हरित क्रांति की बदौलत ही भारत अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर बना और पिछले छः दशकों से भारत दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश बन गया है। साल 1960 की हरित क्रांति के बाद भारत ने गेहूं उत्पादन में करीब 1000 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज कराई है।

ये भी पढ़ें: 
इधर भीषण गर्मी से झुलसे अन्नदाता, उधर गेहूं की पैदावार में हुई रिकॉर्ड गिरावट 

केन्द्र सरकार के डाटा चार्ट के अनुसार साल 1960 की शुरुआत में भारत 98.5 लाख टन गेहूं का उत्पादन करता था। लेकिन हरित क्रांति के बाद भारत लगातार गेहूं का उत्पादन बढ़ाता गया और आज गेहूं उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। आज भारत 1068.4 लाख टन गेहूं का उत्पादन कर रहा है।


ये भी पढ़ें:
विपक्ष ने गेहूं संकट पर पूछा सवाल, तो केंद्रीय मंत्री तोमर ने दिया ये जवाब 

भारत पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान रिकॉर्ड 70 लाख टन अनाज का निर्यात कर चुका है। आज अनाज की कुल पैदावार प्रति हेक्टेयर के हिसाब से तीन गुना बढ़ गई है। 1960 के मध्य में प्रति हेक्टेयर 757 किलोग्राम की पैदावार हुआ करती थी, जो वित्तीय वर्ष 2021 में 2.39 टन हो गई है। 

अनाज के रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद

वित्तीय वर्ष 2021-22 में गेहूं का उत्पादन बढ़ना तय है। इस साल भी भारत में गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद जताई जा रही है। गेहूं उत्पादन में भारत को लगातार ख्याति मिल रही है, जो कृषि क्षेत्र के लिए अच्छे संकेत हैं।

कृषि कार्यों के अंतर्गत ड्रोन के इस्तेमाल से पहले रखें इन बातों का ध्यान

कृषि कार्यों के अंतर्गत ड्रोन के इस्तेमाल से पहले रखें इन बातों का ध्यान

भारत सरकार की 2025 से पहले किसानों की आय को दोगुना करने की नीति के तहत, साल 2021 में कृषि कार्यों के अंतर्गत ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर सुदृढ़ सोच के रूप में ड्रोन पॉलिसी रूल्स 2021 (Drone policy Rules 2021) को पेश किया गया। इस पॉलिसी के तहत कुछ महत्वपूर्ण तथ्य, जैसे कि ड्रोन उड़ाने के लिए अनुमति और अलग-अलग एरिया के लिए लगाई गई कुछ पाबंदी के साथ ही, जलवायु के अनुसार मौसम को ध्यान रखते हुए ड्रोन के इस्तेमाल करने की तकनीक को भी पेश किया गया है। पिछले कुछ समय से भारत सरकार की भारतीय कृषि का मशीनीकरण करने की सोच के लिए भी ड्रोन तकनीक का प्रचार प्रसार किया जा रहा है।

ड्रोन तकनीक का कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल

ड्रोन तकनीक का कृषि क्षेत्र में सर्वाधिक इस्तेमाल अलग-अलग कीटनाशी और खरपतवार नाशी को बड़े खेतों में सीमित मात्रा में स्प्रे करने के लिए किया जाता है। ड्रोन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि ना सिर्फ इससे पूरे खेत में एक समान छिड़काव किया जा सकता है, बल्कि, साथ ही ऐसे रसायनिक उर्वरकों से किसान भाइयों का संपर्क भी कम हो जाता है जो कि उन्हें कई प्रकार की बीमारियों से भी दूर रखने में सहायक होता है।

ये भी पढ़ें: 
किसानों को खेती में ड्रोन का उपयोग करने पर मिलेगा फायदा, जानें कैसे

पेस्टिसाइड के छिड़काव में ड्रोन का इस्तेमाल :

भारत की जलवायु और मिट्टी में कुछ कमियों की वजह से अनेक प्रकार की कीटनाशक बीमारियां फसलों में नुकसान पहुंचा सकती है। इन्हीं का निदान करने के लिए कुछ बड़े किसान ड्रोन की सहायता से पेस्टिसाइड का छिड़काव करते हैं। परंपरागत कीटनाशी स्प्रे करने की तुलना में ड्रोन से छिड़काव करने की वजह से किसान भाइयों को कुछ फायदे हो सकते हैं,जैसे कि :

  1. पूरे क्षेत्र में एक समान मात्रा में कीटनाशक छिड़काव होने के साथ ही रसायनिक उर्वरकों का सीमित रूप से इस्तेमाल होना।
  2. सीमित इस्तेमाल की वजह से मृदा की उर्वरता को बराबर बनाए रखना।
  3. बड़े खेत में छिड़काव के लिए लगने वाली मजदूरी में कटौती।
  4. पानी और मृदा प्रदूषण में कमी
  5. छिड़काव करने वाले व्यक्ति का रासायनिक उर्वरकों से संपर्क ना होने की वजह से बीमारियों से बचाव

फसल की निगरानी में ड्रोन का इस्तेमाल :

तकनीकी के बेहतर इस्तेमाल की वजह से, आज के समय में बनने वाले ड्रोन अनेक प्रकार के फोटो कैमरा और दूसरे कई फीचर्स के साथ आते है। इनकी मदद से, यदि आपका खेत बहुत बड़ा है तो आसानी से घर बैठे ही अपनी फसल की हेल्थ की जांच की जा सकती है। घर बैठे ही आप पता लगा सकते हैं कि आपके खेत के कौन से हिस्से में फसल की वर्द्धि दूसरी जगह की तुलना में कम है, कौन से एरिया पर कीटनाशक का छिड़काव अधिक मात्रा में किया जा सकता है। साथ ही अगले सीजन की शुरूआत में ही उस जगह का अच्छी तरीके से प्रबंधन किया जा सकता है।

ये भी पढ़ें: नैनो यूरिया का ड्रोन से गुजरात में परीक्षण

फसल प्रबंधन में ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल :

ड्रोन तकनीक और कृषि क्षेत्र में पिछले कुछ समय से योगदान देने वाली स्टार्ट-अप कम्पनियों की वजह से ऐसे बेहतरीन तकनीक के ड्रोन बनाए गए हैं, जिनकी मदद से आप घर बैठे ही अपने खेत में बीज और कई दूसरी ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल कर सकते है। इसकी वजह से आप के खेत में फसल का प्रबंधन कम लागत में ही, आसानी से बहुत बेहतर तरीके से किया जा सकेगा। फसल प्रबंधन अच्छा होने की वजह से खेत की उत्पादकता स्वतः ही पहले की तुलना में बढ़ जाएगी। बिहार के पटना जिले में ड्रोन तकनीक से जुड़ी हुई एक स्टार्टअप 'एडवेंचर-ड्रोन' ने स्थानीय किसान भाइयों के साथ मिलकर लगभग 100 हेक्टेयर क्षेत्र में बीज बोए और साथ ही उसी स्थान से ही बीज के पल्वित होने के साथ इस्तेमाल में आने वाले कुछ रासायनिक और जैविक उर्वरकों का भी आसानी से छिड़काव किया।

ड्रोन जीपीएस की मदद से खेत का निरीक्षण :

उड़ीसा सरकार के द्वारा चलाई गई ड्रोन जीपीएस स्कीम (Drone GPS Scheme) के तहत, आप घर बैठे ही कृषि विभाग के द्वारा दिए जाने वाले ड्रोन का इस्तेमाल कर अपने खेत का बिल्कुल निशुल्क निरीक्षण कर सकते है। इस ड्रोन में जीपीएस के साथ ही कई अलग प्रकार के सेंसर लगे होते है, जो कि किसान को उसके खेत का कुल क्षेत्रफल बताने के अलावा मिट्टी का अनुमान लगाकर इस्तेमाल में होने वाले फर्टिलाइजर की भी उपयुक्त जानकारी दे रहे है। साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता का पता लगाकर उस खेत में उगने वाली उपयुक्त फसल की सलाह भी कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा किसान भाइयों को दी जा रही है। इस तैयार डाटा को सॉफ्टवेयर की मदद से सरकार को भी भेजा जा रहा है, जिसके माध्यम से आने वाले समय में सरकार के द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी का निर्धारण अलग-अलग क्षेत्र के अनुसार किया जा सकेगा।

ड्रोन का इस्तेमाल कर फसल में कीट या बीमारियों के निदान की तैयारी :

हाल ही में केरल में राज्य सरकार के द्वारा चलाए गए एक अभियान के तहत एर्नाकुलम जिले में कॉफी में होने वाली बीमारियों का पता भी ड्रोन तकनीक की वजह से ही लगाया गया है। अब कृषि वैज्ञानिक, उत्तरी भारत के राज्यों में भी जल्दी ही ड्रोन का इस्तेमाल कर बीमारियों के निदान की तैयारी कर रहे हैं। ड्रोन तकनीकी का एक फायदा यह भी है, कि इसकी मदद से किसानों को बहुत ही जल्दी और सटीक डाटा मिल जाता है, जिसकी किसी भी बीमारी के प्रति वह त्वरित रूप से निर्णय ले सकते हैं और बीमारी को पूरे खेत में फैलने से पहले ही रोका जा सकता है। इसके अलावा किसी प्रकार के कीट या फिर बीमारी की वजह से आप के खेत में कोई नुकसान होता है तो उस नुकसान की जानकारी भी ड्रोन के माध्यम से ही सरकारी अधिकारियों के द्वारा एकत्रित की जा रही है, जिसके बाद आसानी से किसानों को मुआवजा मिल पाएगा।

ड्रोन की मदद से पौध लगाना :

कृषि वैज्ञानिकों और एक ड्रोन स्टार्टअप के द्वारा आसाम के गुहावाटी जिले तथा उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में ड्रोन की मदद से कई फसलों की पौध को सीधे जमीन में लगाया गया है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इस तकनीक की मदद से पौधे को लगाने में किसानों को होने वाले खर्चे में लगभग 90% तक की कमी आ सकती है। इसके अलावा दो पौध के बीच में रहने वाली दूरी का भी ड्रोन के द्वारा ही नियंत्रण किया जाता है और इसमें गलती होने की गुंजाइश बहुत ही कम रहती है, इतनी सटीकता से पौध रोपण होने की वजह से उत्पादकता में लगभग 30% तक की वर्द्धि देखी जा रही है।

इंश्योरेंस क्लेम में ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल किसानों के लिए होगा फायदेमंद :

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत भारतीय किसानों को पहले से ही कम कीमत में बेहतरीन इंश्योरेंस क्लेम (Insurance Claim) की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है। अब ड्रोन की मदद से इंश्योरेंस क्लेम के दौरान होने वाली देरी को भी काफी आसानी से कम किया जा सकता है और इससे कम जमीन वाले किसानों को बहुत फायदा होगा क्योंकि तकनीक के कम इस्तेमाल की वजह से ज्यादा नुकसान उन्हीं के खेतों को होता है।

सरकार द्वारा चलाई गई ड्रोन के इस्तेमाल की कुछ स्कीम की जानकारी

ऊपर बताई गई जानकारी से किसान भाइयों ने यह तो समझ लिया होगा कि एक साधारण से ड्रोन की मदद से उनकी फसल को कितना फायदा हो सकता है, अब हम आपको बताएंगे सरकार के द्वारा चलाई गई ऐसी कुछ सरकारी स्कीम, जिनकी मदद लेकर आप आसानी से अपने खेत में भी ड्रोन का इस्तेमाल कर सकेंगे :

कृषि मशीनीकरण पर सबमिशन स्कीम (Sub-Mission on Agricultural Mechanization (SMAM))

इस स्कीम के तहत भारत के छोटे और सीमांत किसानों को लगभग 40 से 100 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाएगी। इस सब्सिडी की अधिकतम कीमत दस लाख रुपए तक की होगी, पर किसान भाइयों को यह ध्यान रखना होगा कि यह दस लाख रुपए केवल उन्हीं किसानों को मिलेगा जो कुछ किसान यूनिवर्सिटी, जैसे कि आईसीएआर औऱ कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़े हुए रहेंगे। इसके अलावा, यदि आपने अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री एग्रीकल्चर से की हुई है तो बिना किसी कृषि केंद्र से जुड़े हुए भी आप 50% तक सब्सिडी का फायदा उठा सकेंगे। इसके लिए आपको अपने गांव में स्थित कस्टम हायरिंग सेंटर पर जाकर आवेदन जमा करवाना होगा, एक बार आवेदन जमा होने पर आपकी योग्यता के आधार पर मैसेज और ईमेल के जरिए कृषि विभाग के द्वारा ड्रोन की खरीद पर सब्सिडी उपलब्ध करवा दी जाएगी।

ये भी पढ़ें: अब होगी ड्रोन से राजस्थान में खेती, किसानों को सरकार की ओर से मिलेगी 4 लाख की सब्सिडी

किसान ड्रोन स्कीम

कृषि विभाग के द्वारा ड्रोन किसान यात्रा के तहत भारत में केमिकल मुक्त कृषि पर पिछले कुछ समय से ज्यादा ही ध्यान दिया जा रहा है और इसी के तहत अब ड्रोन शक्ति स्कीम और किसान ड्रोन स्कीम की मदद से भारत की खेती को अलग स्तर पर ले जाने की तैयारियां की जा रही है। किसान ड्रोन में एक पोषक तत्व और कीटनाशकों से भरा हुआ एक बड़ा टैंक होता है, जिसकी क्षमता 5 किलो से लेकर 10 किलो तक हो सकती है। इस ड्रोन की मदद से आप अपने खेत में सीमित मात्रा में और खेत के हर कोने में एक समान कीटनाशक का छिड़काव कर सकेंगे। इस ड्रोन को एक एकड़ भूमि में कीटनाशी छिड़काव में लगभग 15 मिनट का समय लगेगा। इतने कम समय की वजह से आसानी से कोई भी किसान घर से ही इसका इस्तेमाल कर सकेंगे। किसान ड्रोन का एक और इस्तेमाल खेत से सब्जी मंडियों तक सब्जी और फलों को पहुंचाने के लिए भी किया जाएगा। इस ड्रोन की मदद से खेत में उगी हुई सब्जियों को 10 किलोमीटर तक के एरिया तक उपलब्ध सब्जी मंडी में पहुंचाया जा सकेगा और आने वाले समय में इस एरिया को बढ़ाने की तैयारियां भी की जा रही है।

स्वामित्व स्कीम

किसान भाई अब ड्रोन की मदद से अपने खेत की सम्पूर्ण जानकारी मोबाइल एप पर सुरक्षित कर सकते है और उस डेटा में खुद से ही बदलाव भी किया जा सकता है। इस एप में ही आप लिख सकेंगे की आपने अपने खेत में कौन से उर्वरक का इस्तेमाल किया था और उससे आपको कितनी उत्पादकता प्राप्त हुई थी। इसके अलावा इसी एप में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा दी गई नई एडवाइजरी और फसल में लगने वाले उर्वरक की निश्चित मात्रा की जानकारी भी दी जाएगी।

ये भी पढ़ें: एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने के लिए मोदी सरकार ने दिए 10 हजार करोड़

कृषि में काम आने वाले ड्रोन की कितनी होगी कीमत

वर्तमान में इस्तेमाल किए जा रहे कृषि ड्रोन इंटरनेट पर आधारित स्मार्ट टेक्नोलॉजी से संचालित होते है और इनकी कीमत लगभग पांच लाख रुपए से लेकर दस लाख रुपए के बीच में होती है। शुरुआती दौर में कीमत अधिक होने के बाद धीरे-धीरे नए आविष्कार होने की वजह से अब सरकार के द्वारा सब्सिडी के तहत ड्रोन किसानों को बिल्कुल मुफ्त भी उपलब्ध करवाया जा रहा है, क्योंकि अब एक दस लाख रुपए तक के ड्रोन को खरीदने के लिए सरकार के द्वारा 100 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जा रही है।

कृषि क्षेत्र में ड्रोन इस्तेमाल करने से पहले रखें इन बातों का ध्यान :-

उड्डयन मंत्रालय और कृषि विभाग के द्वारा जारी की गई एक सयुंक्त एडवाइजरी के तहत खेती में काम आने वाले ड्रोन के इस्तेमाल से पहले आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा जैसे कि:-

  1. जिस क्षेत्र में आप कीटनाशक छिड़काव करना चाहते है, उस क्षेत्र को ड्रोन उड़ाने से पहले ही तय करके रखना होगा।
  2. ड्रोन के द्वारा कीटनाशक का छिड़काव करने के लिए सरकार के द्वारा अनुमति प्राप्त कीटनाशी का ही इस्तेमाल करना होगा।
  3. ड्रोन उड़ाने से पहले आपको कीटनाशी छिड़काव के लिए दी जाने वाली स्पेशल ट्रेनिंग लेनी होगी, जिसे वर्तमान में भारत सरकार के द्वारा डीडी किसान चैनल पर समय-समय पर प्रसारित किया जाता है।

आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को खेती में काम आने वाले ड्रोन से संबंधित संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी और Merikheti.com के द्वारा ड्रोन के इस्तेमाल से होने वाले फायदे की यह जानकारी भविष्य में आप के लिए उपयोगी साबित होगी।

सरकार से मिल रहा ड्रोन लेने पर १०० % तक अनुदान, तो क्यों न लेगा किसान

सरकार से मिल रहा ड्रोन लेने पर १०० % तक अनुदान, तो क्यों न लेगा किसान

आजकल खेती के लिए नयी नयी तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे फसल के उत्पादन के लिए कम से कम लागत में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन किया जा सके। आधुनिक कृषि यंत्रों की सहायता से खेती की देखभाल और रख रखाव बेहद आसान हो गया है, कृषि क्षेत्र में ड्रोन  (Agriculture Drone) की उपस्थिति ने एक नयी कृषि प्रणाली को प्रचलन में ला दिया है। किसान ड्रोन की सहायता से फसल को कीटनाशकों से बचाने के लिए छिड़काव आदि कर सकते हैं। ज्यादातर किसान आर्थिक रूप से ड्रोन जैसे महंगे उपकरण खरीदने के लिए सक्षम नहीं है, इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही सरकार कृषि यंत्रों पर अनुदान देती है, जिससे किसान आवश्यक यंत्रों को आसानी से खरीद सकें। साथ ही, सरकार के द्वारा ड्रोन के उपयोग को खेती किसानी में बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है, इसी के अनुरूप सरकार द्वारा बम्पर सब्सिडी देने की बात कही जा रही है।

ये भी पढ़ें: कृषि कार्यों के अंतर्गत ड्रोन के इस्तेमाल से पहले रखें इन बातों का ध्यान

ड्रोन पर कितना अनुदान मिल रहा है ?

फसल की कम लागत में अधिक उत्पादन के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों की उपलब्धता बेहद आवश्यक है, सरकार ड्रोन जैसे कृषि उपकरणों पर अनुदान दे रही है, जिसमें कृषि प्रशिक्षण संस्थानों एवं कृषि विश्वविद्यालयों को ड्रोन की खरीद पर १०० % तक या १० लाख रुपये तक अनुदान दिया जायेगा। कृषि से स्नातक युवा, अनुसूचित जनजाति वर्ग एवं महिला किसान ५० % या ५ लाख रुपये तक अनुदान प्राप्त कर सकेंगे। कृषक उत्पादक संगठनों को ड्रोन की खरीद पर ७५ % तक अनुदान दिया जायेगा। इसके साथ ही अन्य किसानों को ४० % या ४ लाख रुपये तक सब्सिडी प्रदान की जाएगी। सरकार द्वारा भिन्न भिन्न वर्गों के लिए अनुदान का प्रतिशत भी भिन्न भिन्न है, हालाँकि सरकार अधिकतर किसानों को लाभान्वित करने के लिए पूरी योजना में है।

ड्रोन किसानों के लिए किस प्रकार उपयोगी है

किसान जिस भूमि में १ घंटे में जितना कीटनाशक छिड़काव कर पाते हैं, ड्रोन की सहायता से उतनी ही फसल में २० मिनट में छिड़काव कर सकते हैं। साथ ही किसानों को फसलीय कीड़े मकोड़ों से होने वाली क्षति से भी दूर रखा जा सकता है।

ये भी पढ़ें: इन ड्रोन को है भारत में उड़ाने की अनुमति : जानें डीजीसीए गाइडलाइन
आकस्मिक रूप से फसलों में कीट और रोगों के आने के बाद पूरी फसल में समयानुसार छिड़काव, किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होता है, जिसमे ड्रोन उनकी इस समस्या के निराकरण के लिए बेहद सहायक होगा। ड्रोन की क्षमता कम समय में अधिक भूमि में बेहतर रूप से छिड़काव करने की है।

क्या किसान ड्रोन को अच्छी तरह से उपयोग कर पाएंगे

बदलते दौर में किसानों ने समयानुसार कृषि यंत्रों को सुचारु रूप से उपयोग में लाने का कार्य किया है एवं आधुनिक यंत्रों से उत्पादन में भी वृद्धि की है। धीरे धीरे किसान ड्रोन के उपयोग को बड़े स्तर पर कृषि उत्पादन में लाने का कार्य करेंगे। सरकार द्वारा दिये जा रहे अनुदान से किसानों को ड्रोन खरीदने और उपयोग में लाने का अवसर मिलेगा। परिणामस्वरूप इससे किसानों की आय में वृद्धि होगी और उत्पादन में निश्चित रूप से सहजता भी होगी।
कृषि मंत्रालय ने पीएम किसान सम्मान निधि योजना में किया अहम बदलाव

कृषि मंत्रालय ने पीएम किसान सम्मान निधि योजना में किया अहम बदलाव

यदि आप प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के पात्र हैं। तो ऐसे में आपके लिए एक बड़ी खबर है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, जिसका प्रत्यक्ष तौर पर प्रभाव देश के 8 करोड़ से अधिक किसानों के ऊपर पड़ेगा। भारत सरकार शीघ्र ही प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की 14वीं किस्त की धनराशि को हस्तांतरित करने वाली है। अब ऐसे में योजना की 14वीं किस्त को जारी करने से पूर्व सरकार ने कुछ जरूरी बदलाव योजना के अंदर किए हैं। वर्तमान में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में लाभार्थी स्टेटस देखने का ढ़ंग पूर्णतय बदल गया है। इसके अतिरिक्त सरकार ने पीएम किसान मोबाइल एप भी जारी किया है। बेनिफिशियरी स्टेटस को देखने का तरीका फिलहाल परिवर्तित हो चुका है। बेनिफिशियरी स्टेटस को देखने के लिए आपको फिलहाल रजिस्ट्रेशन नंबर की आवश्यकता पड़ेगी।

कृषि मंत्रालय ने पीएम किसान मोबाइल ऐप जारी किया

साथ ही, फर्जीवाड़े की रोकथाम करने के मकसद से केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने पीएम किसान मोबाइल एप को भी जारी किया है। इस ऐप की विशेष बात यह है, कि यह फेस ऑथेन्टिकेशन तकनीक से युक्त है।

ये भी पढ़ें:
अब किसान ऐप से कर सकेंगे किसान प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की ई-केवाईसी प्रक्रिया
जानकारी के लिए बतादें कि इस एप की सहायता से किसान बड़ी सहजता से फेस ऑथेंटिकेशन की मदद से अपनी ई-केवाईसी करा सकते हैं। अब ऐसी स्थिति में उनको वन टाइम पासवर्ड एवं फिंगरप्रिंट की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

15 जुलाई से पहले आ सकती है 14वीं किस्त

भारत सरकार की तरफ से अब तक प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की 13 किस्तें जारी की जा चुकी हैं। अब ऐसी स्थिति में देशभर में करोड़ों किसान इस स्कीम की 14वीं किस्त का बड़ी ही उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं। मीडिया खबरों के मुताबिक, तो भारत सरकार 15 जुलाई से पूर्व प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की 14वीं किस्त की धनराशि को हस्तांतरित कर सकती है। हालांकि, सरकार की तरफ से अब तक इसको लेकर किसी तरह की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है।
Cloud Computing: कृषि क्षेत्र में क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक की क्या भूमिका होती है

Cloud Computing: कृषि क्षेत्र में क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक की क्या भूमिका होती है

आज भारत में कृषि को उन्नत बनाने के लिए हर तरह की कोशिशें की जा रही हैं। इन्हीं कोशिशों को लेकर अगर कृषि को क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक आधारित बना दिया जाए तो यह वर्तमान मुनाफे से कई गुणा तक बढ़ जाता है। आइये जानते हैं, कि क्लाउड कंप्यूटिंग क्या होता है और इसके कितने लाभ होते हैं। क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक ने विभिन्न उद्योगों में क्रांति लादी है और कृषि भी इसका अपवाद नहीं है। हाल के वर्षों में, कृषि में क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक के एकीकरण ने उल्लेखनीय बदलाव लाए हैं, जिससे कृषकों एवं कृषि व्यवसायों को दक्षता, उत्पादकता और स्थिरता में सुधार के नए अवसर मिले हैं। यह लेख क्लाउड कंप्यूटिंग की अवधारणा, इसकी विशेष खासियतों और कृषि क्षेत्र को इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले महत्वपूर्ण लाभों की जाँच करता है।

कृषि क्षेत्र में क्लाउड कंप्यूटिंग का क्या अर्थ है

क्लाउड कंप्यूटिंग एक ऐसी तकनीक होती है, जो कि इंटरनेट पर डेटा और एप्लिकेशन के भंडारण, प्रसंस्करण और साझा करने लायक बनाती है, जिससे ऑन-प्रिमाइसेस बुनियादी ढांचे की जरूरत खत्म हो जाती है। लोकल सर्वर अथवा भौतिक हार्डवेयर पर निर्भर रहने की जगह क्लाउड-आधारित सेवाओं को Third-Party प्रदाताओं द्वारा होस्ट और रखरखाव किया जाता है, जो इंटरनेट कनेक्शन के साथ कभी भी और कहीं भी पहुंचने योग्य होती हैं। ये भी पढ़े: जाने किस व्यवसाय के लिए मध्य प्रदेश सरकार दे रही है 10 लाख तक का लोन

कृषि क्षेत्र में क्लाउड कंप्यूटिंग की प्रमुख खासियतें

डेटा भंडारण और पहुंच

क्लाउड कंप्यूटिंग मौसम के पैटर्न, फसल प्रदर्शन, मिट्टी की गुणवत्ता और बाजार के रुझान समेत बड़ी मात्रा में कृषि डेटा के सुरक्षित भंडारण की सुविधा प्रदान करती है। किसान विभिन्न उपकरणों से वास्तविक समय में इस डेटा तक पहुंच सकते हैं, जिससे उन्हें तुरंत फैसला लेने में मदद मिलती है।

स्केलेबिलिटी

क्लाउड सेवाएं स्केलेबल समाधान प्रदान करती हैं, जो कि कृषि व्यवसायों की गतिशील आवश्यकताओं को समायोजित करती हैं, चाहे उनका आकार कुछ भी हो। किसान अपनी डेटा भंडारण और प्रसंस्करण क्षमताओं को अपनी जरूरतों के अनुसार सुगमता से ऊपर अथवा नीचे कर सकते हैं। ये भी पढ़े: दुग्ध प्रसंस्करण एवं चारा संयंत्रों को बड़ी छूट देगी सरकार

सहयोग और कनेक्टिविटी

क्लाउड प्रौद्योगिकी कृषि आपूर्ति श्रृंखला के अंतर्गत हितधारकों के मध्य निर्बाध मदद को प्रोत्साहन देती है। किसान, शोधकर्ता, कृषिविज्ञानी और खरीदार आसानी से डेटा, अंतर्दृष्टि और सर्वोत्तम विधियों को साझा कर सकते हैं। ज्ञान के आदान-प्रदान को प्रोत्साहन दे सकते हैं और फैसला लेने की क्षमता भी बढ़ा सकते हैं।

लागत दक्षता

क्लाउड कंप्यूटिंग हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में महत्वपूर्ण अग्रिम निवेश की जरूरतों को खत्म कर देती है। इसके बजाय, उपयोगकर्ता उन सेवाओं के लिए भुगतान करते हैं, जिनका वह इस्तेमाल करते हैं। छोटे स्तर के किसानों को किफायती खर्चे पर अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों तक पहुंचने में सहयोग मिलता है।

सुरक्षा

प्रतिष्ठित क्लाउड सेवा प्रदाता संवेदनशील कृषि डेटा को उल्लंघनों और साइबर हमलों से संरक्षण हेतु मजबूत सुरक्षा उपाय जारी करते हैं। यह डेटा गोपनीयता निर्धारित करता है, जो आधुनिक कृषि पद्धतियों के संदर्भ में काफी महत्वपूर्ण है। ये भी पढ़े: वर्टिकल यानी लंबवत खेती से कम जगह और कम समय में पैदावार ली जा सकती है

कृषि क्षेत्र में क्लाउड कंप्यूटिंग के क्या-क्या लाभ होते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि कृषि क्षेत्र में इस तकनीक का बहुत फायदा होता है। किसान यदि इस तकनीक के मुताबिक अपनी फसलों के उत्पादन को निर्धारित करते हैं, तो बेहद आसानी से आप बेहतरीन पैदावार हांसिल कर सकते हैं। साथ ही, बाजार की संपूर्ण जानकारी को प्राप्त कर अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं। हम इस तकनीक से निम्न कृषि लाभ हांसिल कर सकते हैं।

सही व सटीक खेती एवं डेटा-संचालित फैसला पर एक नजर

क्लाउड कंप्यूटिंग किसानों को मौसम पूर्वानुमान, मिट्टी की स्थिति एवं फसल स्वास्थ्य जैसे अहम डेटा तक वास्तविक समय में पहुंच प्रदान करती है। विभिन्न स्रोतों और सेंसरों से डेटा को इकठ्ठा करके, सटीक कृषि पद्धतियाँ ज्यादा सुलभ एवं प्रभावी हो जाती हैं। किसान सिंचाई, उर्वरक एवं कीट नियंत्रण का सटीक प्रबंधन कर सकते हैं। संसाधनों के इस्तेमाल को अनुकूलित कर सकते हैं और अपशिष्ट को कम कर सकते हैं। डेटा-संचालित फैसलों से फसलीय उत्पादन ज्यादा होता है। गुणवत्ता में सुधार होने के साथ-साथ पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है।

उन्नत फसल निगरानी एवं प्रबंधन करने में क्या भूमिका है

क्लाउड-आधारित रिमोट सेंसिंग एवं इमेजिंग प्रौद्योगिकियां किसानों को दूर से भी अपनी फसलों की निगरानी करने योग्य बनाती है। कैमरे और सेंसर से युक्त ड्रोन उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीर खींच पाऐंगे, जिससे फसल के तनाव, बीमारियों अथवा पोषक तत्वों की कमी की शीघ्रता से जाँच करने में मदद मिलती है। यह लक्षित हस्तक्षेपों की अनुमति प्रदान करता है, व्यापक स्पेक्ट्रम रसायनों की आवश्यकताओं को कम करता है और टिकाऊ कृषि को प्रोत्साहन देता है।

सुव्यवस्थित आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन करने में क्या भूमिका है

क्लाउड कंप्यूटिंग कृषि आपूर्ति श्रृंखला के विभिन्न चरणों के दौरान सहज समन्वय की सुविधा प्रदान करती है। बीज आपूर्तिकर्ताओं से लेकर वितरकों और खुदरा विक्रेताओं तक लाभ लेने वाले सुगमता से जानकारी साझा कर सकते हैं। यह बढ़ी हुई कनेक्टिविटी इनपुट एवं उत्पादों की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करती है। यह नुकसान को कम करने के साथ-साथ किसानों के लिए लाभप्रदता भी काफी बढ़ा देती है। ये भी पढ़े: जैविक पध्दति द्वारा जैविक कीट नियंत्रण के नुस्खों को अपना कर आप अपनी कृषि लागत को कम कर सकते है

कृषि क्षेत्र में क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक का सार

क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक कृषि क्षेत्र के लिए एक गेम-चेंजर के तौर पर उभरी है, जो कि किसानों और कृषि व्यवसायों को डेटा-संचालित, टिकाऊ एवं कुशल प्रथाओं को अपनाने के लिए समर्थ बनाती है। क्लाउड की शक्ति का फायदा उठाकर सटीक खेती एक वास्तविकता बन जाती है, जिसमें किसान वास्तविक समय के डेटा एवं बाजार अंतर्दृष्टि के आधार पर सही फैसला लेते हैं। क्लाउड-आधारित समाधानों की मापनीयता एवं लागत-प्रभावशीलता अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाती है, जिससे बड़े और छोटे दोनों स्तर के किसानों को समान रूप से फायदा होता है। इसके अतिरिक्त IoT उपकरणों एवं रिमोट सेंसिंग प्रौद्योगिकियों के साथ क्लाउड कंप्यूटिंग का एकीकरण फसल निगरानी, ​​संसाधन प्रबंधन एवं जलवायु लचीलापन को बढ़ाता है। जैसे-जैसे क्लाउड कंप्यूटिंग का विकास जारी है, कृषि क्षेत्र आगे की प्रगति देखने के लिए तैयार है, जो खेती के भविष्य को ज्यादा स्थिरता एवं पैदावार को प्रोत्साहन देगा।
भारत की तरफ से केन्या के कृषि क्षेत्र को 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर का उपहार

भारत की तरफ से केन्या के कृषि क्षेत्र को 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर का उपहार

वार्ता के पश्चात अपने मीडिया बयान में पीएम मोदी ने कहा है, कि भारत ने अपनी विदेश नीति में हमेशा अफ्रीका को उच्च प्राथमिकता दी है और पिछले लगभग एक दशक में मिशन मोड पर महाद्वीप के साथ अपने समग्र संबंधों का विस्तार किया है। केन्या के राष्ट्रपति विलियम सामोई रुतो दोनों देशों के बीच समग्र संबंधों का विस्तार करने के उद्देश्य से तीन दिवसीय यात्रा पर सोमवार को भारत पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को भारत के दौरे पर आए केन्या राष्ट्रपति विलियम सामोई रुतो के साथ व्यापक बातचीत के पश्चात केन्या के कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण के लिए उन्हें 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने के भारत के फैसले की घोषणा की। रुतो दोनों देशों के बीच समग्र संबंधों का विस्तार करने के उद्देश्य से तीन दिवसीय यात्रा पर सोमवार को यहां पहुंचे।

पीएम मोदी ने क्या कहा है

वार्ता के बाद अपने मीडिया बयान में पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने अपनी विदेश नीति में सदैव अफ्रीका को उच्च प्राथमिकता दी है और पिछले लगभग एक दशक में मिशन मोड पर महाद्वीप के साथ अपने समग्र संबंधों का विस्तार किया है। उन्होंने कहा, "मुझे विश्वास है कि राष्ट्रपति रुटो की भारत यात्रा केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगी बल्कि अफ्रीका के साथ हमारे जुड़ाव को एक नई गति देगी।"

ये भी पढ़ें:
इस योजना के तहत फसलों की ग्रेडिंग-पैकेजिंग हेतु मिलेगी सहायता

भारत केन्या के कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण के लिए देगा सहयोग

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत केन्या को उसके कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण के लिए 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण सहयोग प्रदान करेगा। हिंद-प्रशांत का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि क्षेत्र में भारत एवं केन्या के मध्य करीबी सहयोग साझा प्रयासों को आगे बढ़ाएगा।

'आतंकवाद मानवता के सामने सबसे गंभीर चुनौती'

पीएम मोदी ने कहा कि भारत तथा केन्या का मानना है, कि आतंकवाद मानवता के समक्ष सबसे गंभीर चुनौती है। उन्होंने आगे बताया कि दोनों पक्षों ने आतंकवाद विरोधी सहायता बढ़ाने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि दोनों पक्ष भारत-केन्या आर्थिक सहयोग की पूर्ण क्षमता का एहसास करने के लिए नवीन अवसर तलाशना जारी रखेंगे।
कृषि क्षेत्र में जल के अतिदोहन से विनाशकारी परिणाम झेलने पड़ सकते हैं - कृषि वैज्ञानिक

कृषि क्षेत्र में जल के अतिदोहन से विनाशकारी परिणाम झेलने पड़ सकते हैं - कृषि वैज्ञानिक

नीति आयोग के प्रोफेसर रमेश चंद का कहना है, कि विभिन्न विकसित और विकासशील देशों के मुकाबले भारत में प्रति टन फसलीय उपज में 2-3 गुना ज्यादा जल की खपत होती है।

प्रो. चंद ने कहा कि "कृषि क्षेत्र सिंचाई परियोजनाओं में संसाधनों की बर्बादी, फसल के गलत तौर-तरीकों, खेती-बाड़ी की गलत तकनीकों और चावल जैसी ज्यादा पानी उपयोग करने वाली एवं बिना मौसम वाली फसलों पर बल देने से समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। 

समस्या का शीघ्र समाधान करने की जरूरत है, जिसके लिए सटीक खेती और आधुनिक तकनीकों का चयन करने की आवश्यकता है। विशेष तौर पर कम पानी वाली फसलों पर अधिक बल देना होगा।"

जल के अतिदोहन को रोकना बेहद जरूरी 

“भारत कई विकसित और विकासशील देशों के मुकाबले में 1 टन फसल उपज करने के लिए 2-3 गुना अधिक पानी का उपयोग करता है। खेती का रकबा बढ़ा है, लेकिन ज्यादातर रबी फसलों का, जब बारिश न के बराबर होती है। इसे बदलने की जरूरत है। राज्य सरकारों को विशेष रूप से स्थानीय पर्यावरण और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार खेती-बाड़ी को बढ़ावा देने की जरूरत है।” 

ये भी पढ़ें: स्प्रिंकलर सिस्टम यानी कम पानी में खेती

यह बात नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद, धानुका समूह द्वारा विश्व जल दिवस 2024 के अवसर पर नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में मुख्य भाषण देते हुए कही गई।

देश में सिंचाई परियोजनाओं पर अरबों रुपये खर्च

वर्ष 2015 से पहले भारत के सिंचाई बुनियादी ढांचे की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए, प्रोफेसर रमेश चंद ने आगे कहा, “1995 और 2015 के बीच, छोटे-बड़े सभी तरीके के सिंचाई परियोजनाओं पर अरबों रुपये खर्च हुए। लेकिन, सिंचित जमीन उतनी ही रही। इसमें बड़े बदलाव की आवश्यकता थी और 2015 से केंद्र सरकार ने स्थिति का आंकलन कर तंत्र को बदल दिया। परिणामस्वरूप, पिछले कुछ वर्षों से सिंचित भूमि हर वर्ष 1% बढ़ते हुए 47% से 55% हो गई है।”

कम जल खपत में अधिक भूमि की सिंचाई

दरअसल, कम पानी निवेश में सिंचित भूमि में इजाफा करने पर जोर देते हुए भारत सरकार में कृषि आयुक्त डॉ पी के सिंह ने कहा,“जल शक्ति मंत्रालय के सहयोग से हम जमीन के ऊपर के पानी के बेहतर उपयोग के तरीकों पर काम कर रहे हैं। 

उदाहरण के लिए, यदि एक नहर का पानी वर्तमान में 100 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित कर रहा है, तो हम विभिन्न साधनों का उपयोग करके समान मात्रा में पानी का उपयोग करके इसे 150 हेक्टेयर तक कैसे ले जा सकते हैं।

ये भी पढ़ें: ड्रिप सिंचाई यानी टपक सिंचाई की संपूर्ण जानकारी

आईसीएआर के उप महानिदेशक (कृषि शिक्षा) डॉ. आर सी अग्रवाल ने कृषि क्षेत्र में पानी के सही उपयोग के बारे में किसानों और युवाओं को शिक्षित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। 

डॉ. अग्रवाल ने कहा, “हम एक पाठ्यक्रम डिजाइन कर रहे हैं, जो उन्हें कृषि क्षेत्र में पानी के उपयोग के बारे में जागरूक करेगा और समाधान प्रदान करेगा।”

आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से जल की खपत कम होगी 

बतादें, कि शुरुआत करते हुए धानुका समूह के चेयरमैन आरजी अग्रवाल ने कृषि कार्यों में आधुनिक तकनीकों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग पर बल दिया। 

उन्होंने कहा कि “लगभग 70% प्रतिशत पानी का उपयोग कृषि उद्देश्यों के लिए किया जाता है। ड्रोन, स्प्रिंकलर, ड्रिप सिंचाई और जल सेंसर जैसी आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से कृषि उद्देश्यों के लिए पानी की जरूरत को काफी कम करने में सहायता मिलेगी। इससे पानी की बर्बादी को काफी हद तक कम करने में भी सहायता मिलेगी।”